जनसंख्या वृद्धि अभिशाप या वरदान

भारत में जनसंख्या नियंत्रण एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा रहा है। पिछले कई वर्षो से देश मे एक बड़ा वर्ग जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कर रहा है। इन दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून चर्चा का विषय बना हुआ है। किसी भी देश के लिए जनसंख्या विस्फोट एक गंभीर समस्या है। जनसंख्या विस्फोट के कारण संसाधनों में कमी आने लगती है, इसलिए इसमें स्थिरता लाना जरुरी होता है। संसाधन को देश के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। भारत में विकास की गति की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। जब किसी भाग में विकास कम हो और जनसंख्या अधिक हो तो ऐसे स्थान से लोग रोजगार तथा आजीविका की तलाश में अन्य स्थानों पर प्रवास करते हैं लेकिन संसाधनों की सीमितता तथा जनसंख्या की अधिकता तनाव उत्पनन करती है, विभिन्न क्षेत्रों में उपजा क्षेत्रवाद कहीं न कही संसाधनों के लिए संघर्ष से जुड़ा है। अत्यधिक जनसंख्या अस्पतालों, खाद्यान्नों, घरों या रोज़गार जैसे संसाधनों की कमी पैदा कर रहा है।

माल्थस के जनसंख्या वृद्धि के सिद्धांत

 ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस  के अनुसार किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी(Geomertical Progress) के अनुसार बढ़ती है, जबकि संसाधनों में सामान्य गति (Arithmetic Progress)  से  वृद्धि होती है। इसके अनुसार जनसंख्या की वृद्धि 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64..... की रफ्तार  से बढ़ती है, जबकि जीविकपार्जन के लिए संसाधन 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8,.... की दर से बढ़ती है। माल्थस के  अनुसार प्रत्येक 25 वर्ष मे जनसंख्या दुगनी हो जाती है,लेकिन आज के समय यह सत्य नही है। किंतु यह सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि दर संसाधनों की वृद्धि दर से अधिक होती है। 

 2017 में संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामले विभाग के जनसंख्या प्रकोष्ठ के जारी रिपोर्ट के अनुसार अनुमान लगाया गया है कि भारत की आबादी वर्ष 2025 में चीन से अधिक हो जाएगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार भारत में पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या वृद्धि की गति धीमी हुई है। वर्ष 1971-81 के मध्य वार्षिक वृद्धि दर जहाँ 2.5 प्रतिशत थी वह वर्ष 2011-16 में घटकर 1.3 प्रतिशत पर आ गई है।

जनसंख्या नियंत्रण कानून सभी राज्यों की जरुरत नही -

 भारत में दक्षिण भारतीय राज्यों की कुल प्रजनन दर बहुत कम है जबकि उत्तर भारत के राज्य उत्तरप्रदेश और बिहार मे 3 – 4 प्रतिशत है, जो बहुत उच्च प्रजनन दर है। जिस राज्य में कुल प्रजनन दर बहुत ज्यादा है वहाँ पर राज्य स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाना चाहिए और जहाँ जनसंख्या बढ़ाने कि जरुरत हो वहाँ 2.1 प्रतिशत की स्थिरता दर तक बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। हाँलाकि वैश्विक जनसंख्या जनसंख्या बढ़ रही है।

बढ़ती या घटती आबादी का सामाजिक- आर्थिक प्रभाव -

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, आने वाले दो दशकों में भारत में जनसंख्या वृद्धि दर में तीव्र गिरावट की संभावना है, साथ ही कुछ राज्य वर्ष 2030 तक वृद्ध समाज की स्थिति की ओर बढ़ने शुरू हो जाएंगे। आने वाले 70 -80 सालों में दुनिया की अधिकांश आबादी बुढ़ी हो जाऐगी और सारी चीजें स्थिरता पर चली जाऐगी,मानव सभ्यता तरक्की करना बंद कर देगी। जब आबादी बहुत तेजी से गिरेगी तो अर्थव्यवस्था लंबे समय के लिए मंदी पर चली जाऐगी। कुछ लोगो का मनना है कि मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा।

जनसंख्या का ज्यादा बढ़ना  और घटना दोनों मानव सभ्यता के लिए खतरा है। बढ़ती हुई जनसंख्या सामाज मे कई तरह कि समस्याओं को जन्म देती है जैसे गरीबी, भुखमरी ,रोजगार कि कमी ,संसाधनों कि कमी, पलायन, क्षेत्रवाद इत्यादि । वहीं दूसरी ओर , घटती अबादी या बुढे होती आबादी  आर्थिक विकास के लिए बाधक माना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब विश्व कि अधिकांश जनसंख्या  वृद्ध समाज मे बदल जाऐगी तो लोगों का आर्थिक विकास मे सहभागिता कम हो जाऐगी और आर्थिक विकास दर कम हो जाऐगी । पूरी दूनिया सबसे भयानक आर्थिक संकट के दौर से गुजरेगी जिससे रिक्वर करने मे कई दशक लग जाऐगे। दूनिया कि अधिकांश जनसंख्या वृद्ध होगी तो संसार मे शांति छा जाऐगा , इसके पिछे विशेषज्ञ तर्क देते है कि उस वक्त लोग लड़ने के लिए सक्षम नही होगे और जो सक्षम होगे वो वृद्ध जनसंख्या कि सेवा मे लगे  होगे।

https://aadivasitimes.wordpress.com/2020/12/06/%e0%a4%9c%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%a8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b/

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